देहरादून। राजधानी देहरादून में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है जहां भारी संख्या में आकर श्रद्धालुगण भगवान के दर्शन करते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। राजधानी देहरादून के केन्द्र में बसे प्राचीन सिद्धपीठ माता भद्रकाली मंदिर के इतिहास पर यदि प्रकाश डालें तो प्राचीन सिद्धपीठ माता भद्रकाली मंदिर सन् 1804 में अस्तित्व में आया एक स्वयंभू मंदिर है। उसी समय से ये मंदिर देहरादून शहर के बीचों-बीच दर्शनलाल चौक के निकट स्थित है। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से यहां आता है भगवान उसकी प्रार्थना सुनते हैं और उसकी इच्छा अवश्य पूरी करते हैं। इस स्थान को छोटी डाट काली भी कहा जाता है। जानकारों के अनुसार इस मंदिर के दर्शनकर लाखों भक्तजनों की मनोकामनाएं पूर्ण हुई हैं।
वर्ष 1940 में यहां एक पुजारी स्व. बहुगुणा जी आये तब से लेकर आज तक उनका परिवार ही माता की सेवा व पूजा-पाठ करता आ रहा है। स्व. बहुगुणा जी के पुत्र रमेश बहुगुणा (सिद्धार्थ) जो वर्तमान में इस मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में यहां एक भीषण हादसा घटित हुआ था, भारी बरसात के कारण सड़क में बहने वाला पानी मंदिर परिसर के अंदर भर गया था जिस वजह से लगभग 500 वर्ष पुराना एक विशालकाय बरगद का वृक्ष मंदिर में बने कमरों के उपर अचानक गिर गया। 25 जून 2017 की रात को लगभग साढ़े तीन बजे हुए इस हादसे के वक्त मंदिर के पुजारी बहुगुणा जी के परिजन कमरे में ही सो रहे थे, ये माता भद्रकाली की शक्ति की ही महिमा है कि परिजनों को कोई खरोच तक नहीं आई किन्तु मंदिर में बने कमरे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गये थे।
उस वक्त राजपुर रोड विधानसभा क्षेत्र के विधायक खजान दास के निर्देशों पर मंदिर की मरम्मत का कार्य संबंधित विभाग द्वारा किया गया था। वर्तमान में भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहां माता के दर्शन करने आते हैं लोक आस्था से जुड़े इस मंदिर की महत्ता के बारे में जानकर भक्तगण माता के दर्शनों को चले आते हैं। रेंजर्स ग्राउंड में बने इस मंदिर की सुन्दरता देखते ही बनती है।
मंदिर के पुजारी रमेश बहुगुणा (सिद्धार्थ) ने बताया कि रेंजर्स ग्राउंड स्थित प्राचीन सिद्धपीठ माता भद्रकाली मंदिर की वे काफी वर्षों से सेवा कर रहे हैं। भक्तजन यहां आकर काफी शांति व सकून महसूस करते हैं। यहां आकर भगवान के दर्शन करने वाले भक्तों पर माता रानी अपनी विशेष कृपा बरसाती हैं। नवरात्रि के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
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