देहरादून। उत्तराखंड में लगातार सरकारी नौकरियों की भर्तियों में हो रही धांधली पर उत्तराखंड की बेटी, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी प्रसिद्ध, जनसेवी एवं जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे ने एक बार फिर अपना रोष ज़ाहिर किया है।
उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे ने राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश में खुलेआम बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वे बीते कईं वर्षों से जनसेवा के कार्य करती आ रहीं हैं। अपने समाज सेवा के कार्यों के दौरान उन्होंने पहाड़ की पीड़ा और उत्तराखंड वासियों की तकलीफों को बेहद करीब से देखा और महसूस किया। तभी उन्होंने मन में ये ठान लिया कि वे राज्य की जनता के दुःख-दर्द मिटाने के लिए राजनीतिक दल का गठन करेंगी।
जिसके पश्चात उन्होंने अपने संकल्प को अमलीजामा पहनाया और जनता कैबिनेट पार्टी (जेसीपी) के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन किया। जेसीपी की केंद्रीय अध्यक्ष भावना पांडे का कहना है कि उन्हें राजनीति करने का कोई शौंक नहीं है। वे पहाड़ की महिलाओं के दुःख-दर्द व राज्य के बेरोजगार युवाओं की दुर्दशा को देख राजनीति में उतरीं हैं, लेकिन फिलहाल वे पार्टी पॉलिटिक्स न करके समाजसेवा के कार्यों में ही समय दे रहीं हैं।
जेसीपी मुखिया भावना पांडे ने कहा कि उत्तराखंड की जनता आजतक बस बीजेपी और कांग्रेस पर ही दाव खेलती आई है और बार-बार इन्हीं मतलबी दलों के हाथों छली गई है। उन्होंने कहा कि बीजेपी और कांग्रेस ने उत्तराखंड के हित में कोई काम नहीं किया, पहाड़वासी आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में तकलीफें झेलने को विवश हैं। राज्य की मातृशक्ति एवँ युवा बेरोजगारी की मार झेल रहें हैं। परिणाम स्वरुप पहाड़ों से तेजी से पलायन हो रहा है और गांव खाली हो रहे हैं।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने बेरोजगार आंदोलनकारी युवाओं के धरने व प्रदर्शन को लम्बे समय तक अपना समर्थन दिया। इन आंदोलनकारियों में आशा कार्यकत्रियां, पाटनदाईयां, बेरोजगार दंत चिकित्सक, बेरोजगार फार्मासिस्ट, सहायक लेखाकार परीक्षा के अभ्यर्थी, यूपीसीएल पिटकुल में अवर अभियंता की परीक्षा दे चुके युवा, परिवहन विभाग में भर्ती के लिए आंदोलन कर रहे युवा, प्रेरक शिक्षक, एनआईओएस डीएलएड के आंदोलनकारी युवाओं व पीआरडी के जवानों सहित कईं बेरोजगार युवाओं के संगठन शामिल हैं।
उत्तराखंड की बेटी भावना पांडे का कहना है कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में बीते काफी समय तक कईं आंदोलनकारी महिलाएं व युवा अपनी मांगों को लेकर धरना देते रहे व अनशन करते रहे, किंतु राज्य सरकार ने इन बेरोजगार युवाओं व महिलाओं की कभी सुध नहीं ली। ऐसा प्रतीत होता है मानों सरकार को बेरोजगार युवाओं की जरा भी फिक्र नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री धामी ने विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के बेरोजगार युवाओं से कईं बड़े-बड़े वादे किये थे और युवाओं को रोजगार मुहैया करवाने के लिए कईं घोषणाएं भी की थीं किन्तु सरकार बने काफी समय व्यतीत हो जाने के बावजूद आज तक उन घोषणाओं को पूरा नहीं किया गया। फलस्वरूप राज्य का बेरोजगार युवा पुनः सड़कों पर आंदोलन करने को विवश हो रहा है। भावना पांडे ने कहा कि उनका पूरा समर्थन बेरोजगार युवाओं के साथ है और जब तक प्रदेश के सभी बेरोजगार युवाओं व महिलाओं को उनका हक नहीं मिल जाता, तानाशाही के विरुद्ध ये जंग जारी रहेगी।
वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी भावना पांडे ने कहा कि आज उत्तराखंड में रोजाना ही भर्ती घोटाले को लेकर नये-नये खुलासे हो रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के राज में बेरोजगार युवाओं का हक़ छीनकर नेताओं के करीबियों और रिश्तेदारों को दिया गया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में आज बेरोजगार फार्मासिस्ट, सहलेखाकार एवं आशा कार्यकर्ता समेत तमाम आंदोलनकारी सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं और भाजपा नेताओं द्वारा पड़ोसी राज्यों के लोगों को नौकरियां बेची जा रही हैं जो वाकई दुखद है।
गौरतलब है कि जनसेवी भावना पांडे ने बीते वर्ष बेरोजगार युवाओं के लगभग 30 आंदोलनों को 6 महीने तक समर्थन दिया। यही नहीं उन्होंने अपने खर्च पर बेरोजगार युवाओं के नाश्ते, भोजन, टेंट, रज़ाई, गद्दे व रहने आदि की व्यवस्था भी की। उन्होंने कहा कि बेहद शर्म की बात है कि उत्तराखंड की जनता सड़कों पर आंदोलन करती रही और भाजपा के नेता नौकरियों की भर्ती में धांधली करते रहे। आज उत्तराखंड का युवा काफी परेशान है, आलम ये है कि लगभग हर विभाग के लोग आंदोलन करने को विवश हो रहे हैं।
जेसीपी अध्यक्ष भावना पांडे ने मुख्यमंत्री धामी और उनकी सरकार से जवाब मांगते हुए कहा कि उन तमाम घोषणाओं का क्या हुआ जो आपने राज्य के बेरोजगार युवाओं के लिए की थीं? उन्होंने कहा कि जनता कैबिनेट पार्टी जनता की आवाज़ है और वे उत्तराखंड की बेटी होने के नाते जनता की आवाज बनकर सरकार से सवाल पूछतीं हैं कि आखिर राज्य के बेरोजगार नौजवानों को उनका हक़ कब मिलेगा?
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